कॉमेडी एक शैली है, जहां हर दिन अद्भुत स्टैंड-अप कृत्यों के साथ प्रदर्शन किया जाता है, हम सर्वश्रेष्ठ की उम्मीद करते हैं। भारतीय दर्शकों को खुश करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। लेकिन यह कॉमेडियन हर किसी को आसानी से हंसाने में कामयाब रहा है, और वह भी बहुत कम समय में। हम बात कर रहे हैं बिहारी बाबू प्रियेश सिन्हा की।
रोजमर्रा की अनुभवों से प्रेरित उनकी कॉमेडी बहुत वास्तविक होती है। उनके पर्फॉर्मन्सेस में उनका अंदाज़ लोगो को काफी पसंद आता है। पेश है Priyesh Sinha के साथ Humour Sapiens की गयी बातचीत।
1. आपकी जन्मभूमि चम्पारण रही है तथा मुंबई कर्मभूमि – अनुभव कैसा रहा?
ये काफी मिला जुला अनुभव रहा है अभी तक काम करते वक़्त फैंस से मिले प्यार और स्नेह से आनंद मिलता रहा और आगे काम करने का मोटिवेशन मिलता रहा वही दूसरी ओर घर से दूरी और हर बार अगले काम के लिए स्ट्रगल भी चलता रहा। हर किसी को घर से दूर अपनी पहचान बनाने के लिए अच्छे बुरे समय से गुजरना होता है। मेरे साथ भी वो सब हुआ।
2. क्या आप बचपन से ही कलाकार बनना चाहते थे ? स्टैंड अप कॉमेडियन बनने का ख़्याल कब आया?
नहीं, बचपन में मैंने ऐसा नहीं सोचा था कि मैं कभी मुंबई आऊंगा और ग्लैमरस फ़िल्म जगत् का हिस्सा बनूँगा। कॉमेडी के साथ मेरा हमेशा से एक इतिहास रहा है। स्कूल में आयोजित होने वाले नाटक कार्यक्रम में हमेशा से मैं हिस्सा लिया करता था। नाटक लिखना, निर्देश करना, यहाँ तक की एक्टर की कमी होने पर अपने दोस्तों को जबरदस्ती पात्र बनाना मेरा काम था। मेरे लिखे हुए नाटक काफी पसंद किये जाते थे। जब मैं इंजीनियरिंग कॉलेज में आ गया तब नाटक करने का मौका नहीं मिला। तभी मुझे स्टैंड उप कॉमेडी की जानकारी हुई और मुझे लगा ये मेरे लिए सही है। इसमें मुझे किसी ग्रुप की ज़रूरत नहीं। मैं अकेला ही लोगो को एंटरटेन कर सकता हूँ। मेरा पहला शो काफी अच्छा रहा और लोगों ने इसे खूब पसंद किया। जयपुर में उस वक़्त करीब 26 इंजीनियरिंग कॉलेज थे और मेरा वीडियो सारे कॉलेजेस में वायरल हो गया। उसी दौरान ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज आया और भगवान की कृपा से मुझे कपिल शर्मा, सुधेश लाहिरी, राजीव ठाकुर जैसे नामचीन कलाकारों के साथ करीयर शुरू करने का मौका मिला। चूकि उस वक़्त मुझे अपनी पढ़ाई पूरी करनी थी, मैं वापिस जयपुर आ गया। मेरे आने के तुरंत बाद कॉमेडी सर्कस प्रोग्राम शुरु हुआ, और ये मौका मेरे हाथ से निकल गया। जयपुर में मुझे लोकल प्रोग्राम मिलने लगे। FM पिंक सिटी, BigFM जैसे प्रसिद्ध रेडियो चैनेलो पर मेरा प्रोग्राम प्रसारित किया गया। मुझे पहली बार अपने कलाकार होने का एहसास तब हुआ जब राजस्थान पत्रिका, प्रभातख़बर जैसी बड़े अख़बारों में मेरे बारे में लिखा गया। तब लगा की अब मुझे इसी क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहिए।
3. आपके परिवार वालो की क्या प्रतिक्रिया रही? क्या वो आपके कलाकार बनने के समर्थन में थे या आपको उन्हें मनाना पड़ा ?
हाँ, घरवालों का सप्पोर्ट और मोटिवेशन हमेशा से था, लेकिन मैंने कभी यह नहीं सोचा था के मैं मुंबई जाऊंगा और कलकार बनूँगा।
मुझे हसाना पसंद था, मम्मी पापा को भी कॉमेडी का काफी शौक था। वो लोग जॉनी लीवर साहब के कैसेट को सुनते थे, उस समय कैसेट हुआ करता था, जो मुझे भी सुन्ना पसंद था। सुनते सुनते मुझे मिमिक्री भी आ गयी थी और स्कूल कॉलेज में जो दोस्तों और पप्रोफेसरों से प्रतिक्रिया मिलती थी, उसकी वजह से मम्मी पापा ने मेरे टैलेंट को समझा और हमेशा बढ़ावा दिया। उन्होंने कहा कि जब सब लोग इतना पसंद करते हैं तो आप उसको हमेशा अपने अंदर बनाये रखें। मैं रिलायंस में सॉफ्टवेयर इंजीनियर था; जॉब छूट गयी और जो कॉमेडी मैं पार्ट-टाइम करता था, वही फुल-टाइम प्रोफेशन बन गया।
4. आप अपने अनुभव को ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज 3 पर कैसे रेट करेंगे, जहां आपने ऐसे लोगों के साथ प्रदर्शन किया, जो अब इंडस्ट्री के कुछ बेहतरीन नामों में से हैं। और आप हसी का अखाड़ा (जो आपने जीता) पर प्रदर्शन करने के अपने अनुभव को कैसे आकेंगे?
लाफ्टर चैलेंज का एक्सपीरियंस मेरे काम आया, शो हंसी का अखाड़ा में। जो ग्रूमिंग और तैयारी मेरी उस शो में हुई, उसके वजह से मैं हंसी का अखाड़ा का विनर भी बना। उस शो के जज सुनील पाल, प्रताप सिंह फ़ौजदार जैसे दिग्गज थे।
5. हंसी का अखाड़ा के बाद जीवन कैसे बदल गया है? क्या आपने कभी नौकरी पर वापस जाने के बारे में सोचा?
6. स्टैंड-अप कॉमिक के रूप में आपके सामने क्या चुनौतियाँ आयीं?
सबसे बड़ी प्रॉब्लम जो फेस करनी पड़ी और अभी भी करनी पड़ती है, वो यही है कि कुछ भी निश्चित नहीं होता। जब आपके पास काम है तो आप व्यस्त रहते हैं, आमदनी भी होती रहती है। लेकिन जब काम नहीं होता तो आप घर पे रहते हैं, बोर होते हैं और नए काम की तलाश में लगे रहते हैं। एक रचनात्मक व्यक्ति का या एक अभिनेता का घर पे बैठना आसान नहीं होता।
7. अभी के कॉमेडी सीन के बारे में आपको क्या पसंद है?
अभी के कॉमेडी सीन के लिए यही कहूंगा कि अब कॉमेडियन को किसी टीवी शो का या किसी बड़े प्लेटफार्म का मोहताज नहीं होना पड़ता। अब बहुत सारे ऐसे क्लब हैं, जहाँ वो परफॉर्म करके अपना फैन-बेस बना सकते हैं।
8. क्षेत्रीय कॉमेडी पर कोई टिप्पणी?
कॉमेडी किसी भी राज्य की क्षेत्रीय हो या हिंदी और इंग्लिश, उसमें मज़ा आना चाहिए, हंसी आनी चाहिए, और थोड़ा आकर्षक भी हो। क्यूंकि टेलीविज़न पर मैंने 10 साल गुज़ारे हैं, हाल ही में 2018 में Zee टीवी का क्षेत्रीय सा रे गा मा पा भी होस्ट किया है, तो मुझे एहसास है कि कलाकारी क्षेत्रीय स्तर पर हो या राष्ट्रीय स्तर पर, उसका मकसद ऑडियंस का मनोरंजन करना होना चाहिए।
9. किसी नटखट दर्शक के साथ कोई अनुभव?
फैन हर तरह के होते हैं। हम उनके बारे में कुछ भी बुरा भला नहीं कह सकते क्यूंकि वो जो भी करते हैं, वो प्यार में, या इमोशनल होके कर जाते हैं। मैं उनके भावनाओं की कदर करता हूँ और YouTube पर जो भी लोग मुझे कमेंट करते हैं, मई उन्हें जवाब ज़रूर देता हूँ, और उनमें से जो कमेंट दिल के बेहद करीब हैं, उन्हें अपने फ़ेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर ज़रूर शेयर करता हूँ। बहुत सारे ऐसे फैन हैं जो मेरे शुरुवाती दिनों से मेरे साथ जुड़े हुए हैं, वो अब बिलकुल फॅमिली के जैसे लगते हैं।